सप्ताह में 3 बार सरसों तेल में हल्दी मिला कर खाएं, होंगे ये 6 आश्चर्यचकित करने वाले लाभ

अपनी निजी जिंदगी में हम सभी किसी ना किसी रोग से पीडित हैं। चाहे वह कब्ज, भूख ना लगना, अस्थमा या हृदय से संबन्धित बीमारी ही क्यूं ना हो।
इन बीमारियों को ठीक करने के लिये हम अच्छे खासे पैसे भी खर्च करते हैं मगर उससे भी कोई फरक नहीं पड़ता। हम आपको बताना चाहेंगे कि हमारे किचन में ही कुछ ऐसी सामग्रियां रखी हैं, जो दवाइयों को भी फेल कर सकती हैं।
कहने का मतलब है कि सरसों का तेल और हल्दी तो हर किचन में मौजूद होता है। बस 2 टीस्पून सरसों के तेल में 1 टीस्पून हल्दी मिला कर 2 मिनट तक गरम कीजिये और फिर इसे एक चम्मच में डाल कर मुंह में डाल लीजिये।
ऐसा हफ्ते में तीन बार खाना खाने के बाद करें। यह मिश्रण आपको किन-किन बीमारियों से राहत दिलाता है, आइये जानते हैं इसके बारे में –

सरसों तेल में हल्दी मिला कर खाने के फ़ायदे :
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भूख को उत्तेजित करे : इसका सेवन करने से पेट में खाना पचाने वाले जूस का प्रोडक्शन तेज हो जाता है, जिससे आपको अच्छी भूख लगने लगती है।
कब्ज से राहत दिलाए : अगर कब्ज की शिकायत है तो हल्दीऔर सरसों के तेल का नियमित सेवन करना चाहिये।
दिल के लिये लाभकारी : ये दो सामग्रियां शरीर से खराब कोलेस्ट्रॉल को निकालती हैं, जिससे हृदय तक खून का फ्लो अच्छा हो जाता है।
कैंसर से बचाए : इस घरेलू उपचार से शरीर में बनने वाली कैंसर की सेल्स का विकास होता है क्योंकि इनमें phytonutrients और एंटीऑक्सीडेंट काफी भारी मात्रा में पाया जाता है।

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अस्थमा से राहत दिलाए : इसके सेवन से फेफड़ों की जकड़न दूर होती है और अस्थमा से राहत मिलती है। http://www.allayurvedic.org
शारीरिक दर्द से छुटकारा दिलाए : ये दोंनो मिश्रण जब एक साथ मिलते हैं तो इनमें सूजन को खत्म करने वाला गुण पैदा होता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से से दर्द और सूजन को कम कर सकते हैं।

तो इसलिये राजा-महाराजा करते थे सोमरस का सेवन, आप भी सच जानकर हैरान हो जाओगे

प्राचीन काल मे राजा सोमरस का इस्तेमाल किया करते थे। हमारे शास्त्रों और प्राचीन किताबों में सोमरस का उल्लेख किया गया है। आखिर ये सोमरस क्या होता था और क्यों इसका इस्तेमाल इतने जोर सौर से किया जाता था। क्या ये सोमरस आखिर आजकल की शराब का ही एक नाम था? चलिए आज हम आपको इसके बारे में ही बताते हैं। दोस्तो अगर आपने अभी तक हमे फॉलो नहीं किया है तो अभी कर लीजिए ताकि हम आपको सारी जानकारी समय से पहुंचा सके।

कुछ लोग सोमरस को शराब बताते हैं। कहते हैं कि राजा महाराजा सोमरस का सेवन नशे के लिये करते थे। इससे पहले की हम आपको कुछ आगे बताये इससे पहले आप ये लाईने जरूर पढ़ें जो हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में लिखी मिलती हैं, यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दही मिलाया हुआ सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो। इसके अलावा ऋग्वेद में लिखा मिलता है कि हे वायुदेव, यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण गाय के दुध में मिलाकर तैयार किया गया है आइये और इसका पान कीजिये। जब इस सोमरस का सेवन करने के लिए हमारे ग्रंथो में देवताओं का आवाहन किया गया हो तो ये एक शराब अर्थात मदिरा कैसे हो सकता है।

अक्सर शराब के समर्थक यह कहते सुने गए हैं कि देवता भी तो शराब पीते थे? सोमरस क्या था, शराब ही तो थी। प्राचीन वैदिक काल में भी सोमरस के रूप में शराब का प्रचलन था? या शराब जैसी किसी नशीली वस्तु का उपयोग करते थे देवता? कहीं वे सभी भांग तो नहीं पीते थे, जैसा कि शिव के बारे में प्रचलित है कि वे भांग पीते थे। लेकिन किसी भी पुराण या शास्त्र में उल्लेख नहीं मिलता है कि शिवजी भांग पीते थे। इसी तरह की कई भ्रांत धारणाएं हिन्दू धर्म में प्रचलित कर दी गई हैं जिसके दुष्परिणाम देखने को मिल भी रहे हैं।
दरअसल, सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है। ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है-

।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।

यदि सोमरस शराब नहीं थी तो फिर क्या था?
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वेदों की इन ऋचाओं से जाना जा सकता है कि सोमरस क्या था। ऋग्वेद की एक ऋचा में लिखा गया है कि ‘यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्रदेव को प्राप्त हो।।
(ऋग्वेद-1/5/5) …हे वायुदेव! यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।। (ऋग्वेद-1/23/1)

।।शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदुनिम्नं न रीयते।।

(ऋग्वेद-1/30/2)… अर्थात नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकड़ों घड़े सोमरस में मिले हुए हजारों घड़े दुग्ध मिल करके इन्द्रदेव को प्राप्त हों।

इन सभी मंत्रों में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता। भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है। अत: यह बात का स्पष्ट हो जाती है कि सोमरस जो भी हो लेकिन वह शराब या भांग तो कतई नहीं थी और जिससे नशा भी नहीं होता था अर्थात वह हानिकारक वस्तु तो नहीं थी। देवताओं के लिए समर्पण का यह मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका बहुविध उपयोग होता था। सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इन्द्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है, जैसे वर्तमान में पंचामृत अर्पण किया जाता है।

आखिर सोम शराब नहीं है तो फिर क्या और कहां है…

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सोम नाम से एक लता होती थी : मान्यता है कि सोम नाम की लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, हिमाचल की पहाड़ियों, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।
अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईसा के काफी पहले ही इस वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गई। ऐसा भी कहा जाता है कि सोम (होम) अनुष्ठान करने वाले लोगों ने इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं दी, उसे अपने तक ही सीमित रखा और कालांतर में ऐसे अनुष्ठानी लोगों की पीढ़ी/परंपरा के लुप्त होने के साथ ही सोम की पहचान भी मुश्किल होती गई।

सोम को 1. स्वर्गीय लता का रस और 2. आकाशीय चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। सोम की उत्पत्ति के दो स्थान हैं- ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो प्रमुख स्थान हैं- 1.स्वर्ग और 2.पार्थिव पर्वत।
अग्नि की भांति सोम भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आया। ‘मातरिश्वा ने तुम में से एक को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा; गरुत्मान ने दूसरे को मेघशिलाओं से।’ हे सोम, तुम्हारा जन्म उच्च स्थानीय है; तुम स्वर्ग में रहते हो, यद्यपि पृथ्वी तुम्हारा स्वागत करती है। सोम की उत्पत्ति का पार्थिव स्थान मूजवंत पर्वत (गांधार-कम्बोज प्रदेश) है’। -(ऋग्वेद अध्याय सोम मंडल- 4, 5, 6)

स्वर्गीय सोम की कल्पना चंद्रमा के रूप में की गई है। छांदोग्य उपनिषद में सोम राजा को देवताओं में भोज्य कहा गया है। कौषितकि ब्राह्मण में सोम और चन्द्र के अभेद की व्याख्या इस प्रकार की गई है : ‘दृश्य चन्द्रमा ही सोम है। सोमलता जब लाई जाती है तो चन्द्रमा उसमें प्रवेश करता है। जब कोई सोम खरीदता है तो इस विचार से कि ‘दृश्य चन्द्रमा ही सोम है; उसी का रस पेरा जाए।’
वेदों के अनुसार सोम का संबंध अमरत्व से भी है। वह पितरों से मिलता है और उनको अमर बनाता है। सोम का नैतिक स्वरूप उस समय अधिक निखर जाता है, जब वह वरुण और आदित्य से संयुक्त होता है- ‘हे सोम, तुम राजा वरुण के सनातन विधान हो; तुम्हारा स्वभाव उच्च और गंभीर है; प्रिय मित्र के समान तुम सर्वांग पवित्र हो; तुम अर्यमा के समान वंदनीय हो।’

त्रित प्राचीन देवताओं में से थे। उन्होंने सोम बनाया था तथा इंद्रादि अनेक देवताओं की स्तुतियां समय-समय पर की थीं। महात्मा गौतम के तीन पुत्र थे। तीनों ही मुनि थे। उनके नाम एकत, द्वित और त्रित थे। उन तीनों में सर्वाधिक यश के भागी तथा संभावित मुनि त्रित ही थे। कालांतर में महात्मा गौतम के स्वर्गवास के उपरांत उनके समस्त यजमान तीनों पुत्रों का आदर-सत्कार करने लगे। उन तीनों में से त्रित सबसे अधिक लोकप्रिय हो गए।

इफेड्रा : कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हलांकि लोग इसका इस्तेमाल यौन वर्धक दवाई के रूप में करते हैं।

‘संजीवनी बूटी’ : कुछ विद्वान इसे ही ‘संजीवनी बूटी’ कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर ‘सोम’ की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।

यदि हम ऋग्वेद के नौवें ‘सोम मंडल’ में वर्णित सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी। ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।
ईरान और आर्यावर्त : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। इसका मतलब पारसी और वैदिक लोगों में ही इसके रसपान करने का प्रचलन था। इस समूचे इलाके में वैदिक धर्म का पालन करने वाले लोग ही रहते थे। ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ में बदल जाने के कारण अवेस्ता में सोम के बदले होम शब्द का प्रयोग होता था और इधर भारत में सोम का।

सोमरस बनाने की विधि

।।उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।। (ऋग्वेद सूक्त 28 श्लोक 9)

अर्थात : उलूखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिए पवित्र चर्म पर रखें।

।।औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।- निरुक्त शास्त्र (11-2-2)

अर्थात : सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं।

सोम को गाय के दूध में मिलाने पर ‘गवशिरम्’ दही में ‘दध्यशिरम्’ बनता है। शहद अथवा घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था। सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है। इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना। वैदिक साहित्य में इसका विस्तृत और सजीव वर्णन उपलब्ध है।

सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा भेड़ के ऊन की छलनी से छानकर प्राप्त किए जाने वाले सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं, तभी तो पूरे विधान से होम (सोम) अनुष्ठान में पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे।

बाद में प्रसाद के तौर पर लेकर खुद भी तृप्त हो जाते थे। आजकल सोमरस की जगह पंचामृत ने ले ली है, जो सोम की प्रतीति-भर है। कुछ परवर्ती प्राचीन धर्मग्रंथों में देवताओं को सोम न अर्पित कर पाने की विवशतास्वरूप वैकल्पिक पदार्थ अर्पित करने की ग्लानि और क्षमा- याचना की सूक्तियां भी हैं।

सोमरस पीने के फायदे

वैदिक ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार- सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है।

।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम।
उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।- ऋग्वेद (6-47-1)

अर्थात : सोम बड़ी स्वादिष्ट है, मधुर है, रसीली है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है।

शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है। साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं।

सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्।
सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद-10-85-3)

अर्थात : बहुत से लोग मानते हैं कि मात्र औषधि रूप में जो लेते हैं, वही सोम है ऐसा नहीं है। एक सोमरस हमारे भीतर भी है, जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- ‘यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है’।
सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।

कमर बन चुकी है कमरा तो आज ही अपनाएँ ये चमत्कारी उपाय

आज के समय में हर कोई अपनी कमर को पतला रखना चाहता है यह बात पुरुष से ज्यादा महिलाओ के लिए पूरी तरह सच है क्योंकि महिलाएं खूबसूरती का प्रतीक मानी जाती हैं, अतः उनके मन में आकर्षक और पतली कमर प्राप्त करने की ख्वाहिश सबसे ज़्यादा होती है। जहां कई महिलाये अपनी इस मंशा में सफल हो जाती है वही अन्य महिलाये अपनी इस मंशा को पूरी करने में असफल हो जाती है इसके पीछे कई कारण हो सकते है।
कई लोगो के शरीर का स्वरूप काफी आकर्षक होता है और उनकी कमर भी पतली होती है और उन्हें अतिरिक्त देखबाल कई भी आवश्यकता नही होती है जिसका कारण यह होता है कई उनको यह अनुवांशिक रूप से प्राप्त होता है उनके शरीर का रूप निखरने में उनके जींस का बहुत बड़ा हाथ होता है पर ऐसी भी बहुत महिलाये है जिन्होंने नुस्खों से इसे प्राप्त किया है।
चाहे आपकी कमर कमरा बन गयी हो उसको वक़्त रहते नही स्लिम किया तो यह बात भी 100% सत्य है कि वो कमरा फिर अलीशान बंगले का रूप ले लेता है जिसे रोक पाना मुश्किल हो जाता है, समय रहते उचित उपाय ही इसका निदान है। आज हम आपको ऐसे ही चमत्कारी उपाय बता रहे है जिससे आप अपनी कमर को शेप और स्लिम कर पाएंगे।

कमर की चर्बी कम करने के घरेलु उपाय :

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अपनी कमर और पेट की चर्बी को कम करने के लिए आपको रोजाना सुबह सेर करनी चाहिए इसके आलावा खाने के बाद तुरन्त बिस्तर पर न जाये कुछ देर जरूर टहले क्योकि टहलने से आपकी केलोरी कम हो सकती है इसके आलावा अगर आप जनक फ़ूड खाते है या फिर आपको तेलीय खाना बहुत पसन्द है तो आपको चाहिए की आप ऐसे खाने से परहेज करे सामान्य आते की बजाय जो और चने का आटा मिलाकर रोटी खाये।
यदि आप चाय पीने के बहुत शौकीन है तो आप दूध की चाय पीने की बजाय ग्रीन टी ,ब्लैक टी ,या लेमन टी पिए दूध की चाय पीने से मोटापा बढ़ने की सम्भावना बहुत अधिक बाद जाती है इसके आलावा आपको चहिये की आप हर रोज सुबह पानी के साथ शहद का सेवन करे इससे आपकी कमर जल्दी कम होगी।
आपको चहिये की आप सप्ताह में एक बार उपवास जरूर करे आप चाहे तो सप्ताह में एक दिन आप तर्क पदार्थो पर भी रह सकते है।
इसके आलावा कमर और पेट को कम करने के लिए नियमित रूप से योग करना चाहिए ऐसे में आपको कुछ ऐसे आसनो को शामिल करना चाइये जिससे आपको अपने पेट को कम कनरे में मदद मिले जैसे सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और कपाल भाति आदि।
कहाँ एके साथ प्याज और टमाटर का सलाद नमक व काली मिर्च छिड़कर खाये इससे आपको विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन ए, आयरन, पोटैशियम, लाइकोपीन आदि मिलता है।
रोज पपीता खाये लम्बे समय तक पपीते के सेवन से वजन कम होता है।
अगर मोटापा कम नही हो रहा है तो खान एमए कटी हुई हरि मिर्च का उपयोग करे या आप काली मिर्च का उपयोग कर वजन कम करने का यह बेहतरीन उपाय है।
दो चम्मच मूली के रस में शहद मिलाये इसमे बराबर मात्रा में पानी मिलाये ऐसा करने से मोटापा कम हो जायेगा।
अगर आप अपनी कमर का आकर कम करना चाहती है तो आपको शरीर के सम्पूर्ण ढांचे में आपको बदलाव करने की जरूरत है कई लोगो कई आदत होती है को वो नाश्ता छोड़ देते है तो उनको ऐसा नही करना चाहिए।

14 चमत्कारी खाद्य पदार्थ जो पेट के निचले भाग की चर्बी कम करते है :
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पानी : पेट के नीचे की चर्बी को घटाने के लिये हर रोज 7 से 8 गिलास पानी जरुर पियें। इससे शरीर की गंदगी बाहर निकलेगी और आपका मैटाबॉलिज्म बढेगा।
जड़ी बूटियां : आपको सोडियम लेना कम करना होगा नहीं तो शरीर में पानी की मात्रा बढेगी और आप मोटे लगेगें। भोजन में नमक की मात्रा को केंट्रोल करें और इसे कंट्रोल करने के लिये कुछ तरह की जड़ी बूटियों का सेवन करें। त्रिफला खाएं और वजन घटाएं। आंवला या आंवले के जूस का सेवन भी कर सकतें है।
शहद : मोटापा बढने की एक और वजह है, वह है चीनी की मात्रा। चीनी की जगह पर आप शहद का सेवन कर सकते हैं।
दालचीनी : आप अपनी सुबह की कॉफी या चाय में दालचीनी पाउडर डाल कर ब्लड शुगर को कंट्रोल कर सकती हैं। यह एक चीनी को रिपलेस करने का एक अच्छा तरीका भी है।
ड्राई फ्रूट या सूखे मेवे : फैट को कम करने के लिये आपको फैट खाना पडे़गा। जी हां, कई लोग इस बात पर यकीन नहीं करते हैं, लेकिन मेवों में अच्छा फैट पाया जाता है। तो ऐसे में आप बादाम, मूगंफली और अखरोट आदि का सेवन करें। इनमें हेल्दी फैट होता है जो शरीर के लिये जरुरी होता है।
एवोकाडो : इसमे ऐसा वसा होता है जो शरीर के लिये आवश्यक होता है। इसका जूस पीने से आपका पेट पूरे दिन भरा रहेगा और आप ओवर ईटिंग नहीं करेगें।
संतरा : आप को जब भी भूख लगे , तो उस समय अपने पर्स या बैग में संतरे रखें। इससे पेट भी भरा रहेगा और आप मोटे भी नहीं होगें।
दही : अगर आपको पतला होना है तो अनहेल्दी डेजर्ट खाने से बचें और इसकी जगह पर दही खाएं। इसमें बहुत सारा पोषण होता है और कैलोरी बिल्कुल भी नहीं होती।
ग्रीन टी : ग्रीन टी दिन में एक कप ग्रीन टी पीने से लाभ मिलता है। इससे शरीर का मैटाबॉलिज्म बढता है और फैट बर्न होता है।
सालमन : इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि शरीर के लिये जरुरी वसा है और शरीर को अच्छे से कार्य करने के लिये मदद करता है। यह फैट आपका पेट पूरे दिन भरा रखता है और ज्यादा खाने से बचाता है।

ब्रॉकली : इसमें विटामिन सी होता है और साथ ही यह शरीर में एक तत्व बनाता है जो कि शरीर फैट से एनर्जी को बदलने में प्रयोग करता है।
नींबू : रोज सुबह नींबू पानी पीने से आपकी चर्बी कम हो सकती है। अगर पानी गर्म हो तो और भी अच्छा है। इसमें शहद मिला कर पीजिये।
लहसुन : कच्चा लहसुन चबाने से पेट की निचले भाग की चर्बी कम होगी। अगर इसमें थोड़ा सा नींबू का रस छिड़क दिया जाए तो और भी अच्छा। इससे पेट भी कम होगा और ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छा रहेगा।
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अदरक : अपने भोजन में अदरक शामिल करें क्योंकि इसे खाने से पेट के निचले भाग की चर्बी कम होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है जो कि इंसुलिन को बढने से रोकता है और ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है।

मौत को छोड़ कर सभी रोगों को जड़ से खत्म कर देती है यह चीज

दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है . वहीँ उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है. सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बना कर खाई जाती है. फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है.
– आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में उपयोगी है|

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– जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है|
– सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है|
– सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है| इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है| शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है,
– मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है |
– सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व 72 प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है|
– इसकी सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है.
– सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है.
– सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है.
– इसकी जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पिने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है.
– इसके पत्तों का रस बच्चों के पेट के किडें निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है.
– इसका रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है.
– इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है.
– इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है.
– इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है.
– इसकी जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है.
– इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है.
– सर दर्द में इसके पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे.
– इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।
– सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है।
– कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है।
– सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
– आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।
– सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्यक है।
– सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
– इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
– इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।

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– सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
– आप सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं, इससे शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।

सुबह खाली पेट इन बीजों का पानी पीने से पेट की चर्बी मक्खन की तरह पिघल जाएगी, ज़रूर अपनाएँ और शेयर करे

  • आज हम आपको जौ और जौ के पानी के फ़ायदों के बारे में बताएँगे। जौ एक किस्म का अनाज होता है जो देखने में गेंहू की तरह लगता है। जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है। जौ में लैक्टिक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, फॉस्फोरिक एसिड, पोटैशियम और कैल्शियम होता है। अगर आपके पेट और उसके आसपास अधिक चर्बी जमा हो गई हो तो जौ के पानी का सेवन आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। इसको पीने से आपकी पेट की चर्बी कम होने लगती है। इस लेख में विस्‍तार से जानिये, यह चर्बी कैसे कम करता है।
  • जौ की रोटी का इस्तेमाल अक्सर डायबिटिज मरीजो के लिए बेहतर माना जाता है। उनके शरीर के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है। इस तरह की बीमारियों के अलावा और भी कई तरह की बीमारियां है जिसमे यह हमारे शरीर को बहुत फायदा करता है। और हमारे शरीर मे उन बीमारियो से लड़ने की क्षमता पैदा करता है। जौ में भरपूर मात्रा में विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सेलेनियम, जिंक, कॉपर, प्रोटीन, अमीनो एसिड, डायट्री फाइबर्स सहित कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जो कि हमारी सेहत को काफी फायदा पहुंचाते है। इसका इस्तेमाल हम अनाज के रुप मे तो करते है हि साथ ही अगर इसका इस्तेमाल पानी के साथ किया जाएं तो यह हमारे शरीर मे बहुत फायदा पहुंचाता है। यह कई बीमारियों से निजात दिलाने मे हमारी सहायता करता है।

जौ के पानी को तैयार की विधि :

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  • इसके लिए आप कुछ मात्रा में जौ लगभग (100-250 ग्राम) ले लीजिए और उसे अच्छी तरह साफ कर लीजिए उसके बाद इसे करीब चार घंटे तक पानी में भिंगोकर छोड़ दीजिए। फिर इस पानी को तीन से चार कप पानी में मिलाकर धीमी आंच में कम से कम 45 मिनट तक उबाले। इसके बाद गैस बंद कर दें और इसे ठंडा होने दे। जब यह ठंडा हो जाएं तो इसे एक बोतल में भरकर इसके पानी को पीने के लिये इस्तेमाल में लेवे, ये एक दिन का प्रयोग है यही प्रक्रिया रोजाना करे लाभ होगा। मोटापे से ग्रसित लोग कृपया जंक फूड को त्याग दे।

जौ को अनाज के रुप मे खाने के साथ-साथ इसके पानी पीने के और क्या-क्या है फायदें :

1. मोटापा, पेट और कमर की चर्बी घटाए :

  • वजन सबंधी परेशानी मे यह बहुत ही उपयोगी होता है। इसमें ऐसे तत्व पाएं जाते है। जिसका सेवन करने से मेटाबॉलिज्म बढ़ते है। जौ मोटापे को कम करने मे उपयोगी होता है जिससे आप स्लिम नजर आ सकते है।
  • कैसे कम करता है मोटापा : जौ घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का स्रोत होता है। इस गुण के कारण आपको देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है। दो लीटर पानी में दो बड़े चम्मच जौ डालकर उबालें। उबालने के वक्त ढक्कन को अच्छी तरह से लगा दें ताकि जौ के दाने अच्छी तरह से पक जायें। जब यह मिश्रण पानी के साथ घुलकर हल्के गुलाबी रंग का पारदर्शी मिश्रण बन जायें तो समझ जाना चाहिए कि यह पीने के लिए तैयार है, इसको छानकर रोज इसका सेवन करें। इसमें नींबू, शहद और नमक भी डाल सकते हैं। छिलके वाले में ज्यादा फाइबर होता है और पकाने में ज्यादा समय लगता है इसलिए बिना छिलके वाले पकाने में आसान हैं। और जौ-चने के आटे की चपाती के सेवन से भी पेट और कमर ही नहीं सारे शरीर का मोटापा कम हो जाएगा।

2. यूरीनरी इंफेक्‍शन, डीहाइड्रेशन, शरीर के विषाक्त पदार्थ :
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  • इस मिश्रण (बिंदु क्रमांक 1 में बताया गया मिश्रण) को पीने से पेट की चर्बी तो कम होगी साथ ही डीहाइड्रेशन की समस्‍या भी नहीं होगी। यह यूरीनरी इंफेक्‍शन के उपचार में भी मददगार है। यह कब्ज़ को दूर करने के साथ-साथ अमा दोष (आयुर्वेद के अनुसार पेट के विषाक्त अवांछित पदार्थ) से भी राहत दिलाता है। इस अनाज में मूत्रवर्द्धक (diuretic) गुण होता है जो विषाक्त पदार्थों के साथ शरीर के अतिरिक्त पानी को भी निकाल देता है।

3. ह्रदय की बीमारीयो में :

  • इसमें पाया जाने वाले तत्व कोलेस्ट्राल के लेवल को ठीक रहता है। जिसके कारण आपको दिल संबंधी किसी भी तरह की बीमारी नहीं होगी। दिल की बीमारी होने का मुख्य कारण कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होना होता है।

4. इम्यूनिटी सिस्टम बनाए मजबूत :

  • इसमें ऐसे तत्व पाए जाते है। जो कि आपके शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकाल देता है। जिससे कि आपका इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत हो जाता है। साथ ही आपकी स्किन में निखार भी आता है।

5. पेट मे जलन :

  • गर्मियों के मौसम में इसे पीने से ठंड़क मिलती है। अगर आपने तेज मसालेदार खाना खाया है जिसके कारण आपको पेट में जलन हो रही हो तो इसे दूर करने के लिए आप जौ के पानी का सेवन करे जिससे आपकी पेट की जलन मे काफी फायदा करता है।

6. पैरों की सूजन :

  • गर्भावस्था के दौरान महिला के पैरों में होने वाली सूजन को कम करता है। और उनके पैरो की सूजन से सबंधी परेशानी को दूर करता है।

7. यूरीन की समस्या :

  • अगर आपको यूरिन संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या है, तो जौ के पानी का सेवन करना काफी फायदेमंद साबित होता है। यह आपकी यूरीन सबंधी प्रोब्लम को दूर रखता है।

इससे ज़िद्दी से ज़िद्दी और पुरानी से पुरानी क़ब्ज़ जड़ से ख़त्म हो जाती है, सुबह पेट ऐसा साफ़ होगा की कोना-कोना चकाचक हो जाएगा

क़ब्ज़ क्या है ?

  • कब्ज से मतलब है, कि मल-त्याग न होना, मल-त्याग कम होना, मल में गांठें निकलना, लगातार पेट साफ न होना, रोजाना टट्टी नहीं जाना, भोजन पचने के बाद पैदा मल पूर्ण रूप से साफ न होना, मल त्यागने के बाद पेट हल्का और साफ न होना आदि को कब्ज कहते हैं।
  • कब्ज की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है यह छोटे से लेकर बड़े तक किसी को भी और कभी भी हो सकती है कब्ज एक ऐसी समस्या है अगर इससे छुटकारा नहीं पाया गया तो बहुत पेट में दर्द होता है तकलीफ होती है और यह असहनीय दर्द भी हो जाता है। कब्ज का इलाज आज हम आपको बताएंगे कि कब्ज का इलाज कैसे करें कब्ज एक आम समस्या बन गई है यह हर व्यक्ति को परेशान करती है जब किसी व्यक्ति का खाना पूरी तरह से पच नहीं पाता है तो उसे गैस की समस्या हो जाती है और गैस की समस्या होने पर ही कब्ज़ा का होना  संभव होता है।

क़ब्ज़ होने के कारण :

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  • खानपान सम्बंधी गलत आदतें जैसे- समय पर भोजन न करना, बासी और अधिक चिकनाई वाला भोजन, मैदा आदि से बनाया गया मांसाहारी भोजन, भोजन में फाइबर की कमी, अधिक भारी भोजन अधिक खाना, शौच को रोकने की आदत, शारीरिक श्रम न करना, विश्राम की कमी, मानसिक तनाव (टेंशन), आंतों का कमजोर होना, पानी की कमी, गंदगी में रहना, मादक द्रव्यों का सेवन, एलोपैथी दवाइयों के दुष्प्रभाव के कारण, भोजन के साथ अधिक पानी पीने, मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ जैसे-पूरी-कचौड़ी, नमकीन, चाट-पकौड़े खाने, अधिक गुस्सा, दु:ख आलस्य आदि कारणों से कब्ज हो जाती है।
  • कब्ज के कुछ और भी कारण होते हैं जैसे कि हमारा खाने का सही ढंग से ना पचना खाना खाने के बाद बैठ जाना हल्का ना टहलना आदि कारण हो सकते हैं कब्ज को दूर करने के लिए हम यहां पर कुछ उपाय बता रहे हैं जिनको प्रयोग करके आप अपनी कब्ज को दूर कर सकते हैं।

क़ब्ज़ और पेट संबंधी समस्याओं के लिए चमत्कारी और सबसे उत्तम चूर्ण तैयार करना :

  • एक किलो छोटी हरड़ लेकर उसे छाछ में भिगो दें 24 घण्टे बाद हरड़ को छाछ से निकालकर सूखा ले और पीसकर पाउडर बना ले। शाम को सोते समय 4 ग्राम की मात्रा में घड़े (मिट्टी का मटका) के पानी के साथ ले। ये कठिन से कठिन और पुरानी से पुरानी क़ब्ज़ तथा पेट के सभी रोगों के लिए सबसे उत्तम औषधि है ।
  • अगर थोड़ी मेहनत और कर सके तो हरड़ के पाउडर को अरंडी के तेल में हल्का सा भून लें तो ये दुगना गुणकारी पाउडर तैयार हो जाएगा।
  • जिनको ज्यादा कब्ज की समस्या रहती है वो तली हुई चीजें गरिष्ठ भोजन ना ले । ज्यादा फाइबर वाली चीजें प्रयोग करे आटा पिसवाते समय कनक में 2-4 किलो चने मिक्स करके पिसवाएं । पेट की समस्याओं से हमेशा बचे रहेंगे ।

क़ब्ज़ से बचने के लिए कैसा भोजन करे :

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  • दालों में मूंग और मसूर की दालें, सब्जियों में कम से कम मिर्च-मसालें डालकर परवल, तोरई, टिण्डा, लौकी, आलू, शलजम, पालक और मेथी आदि को खा सकते हैं। आधे से ज्यादा चोकर मिलाकर गेहूं तथा जौ की रोटी खाएं। भूख से एक रोटी कम खाएं।
  • अमरूद, आम, आंवला, अंगूर, अंजीर, आलूचा, किशमिश, खूबानी और आलूबुखारा, चकोतरा और संतरे, खरबूजा, खीरा, टमाटर, नींबू, बंदगोभी, गाजर, पपीता, जामुन, नाशपाती, नींबू, बेल, मुसम्मी, सेब आदि फलों का सेवन करें।
  • दिन भर में 6-7 गिलास पानी अवश्य पीयें। मूंग की दाल की खिचड़ी खायें। फाइबर से बने खाने की चीजें का अधिक मात्रा में सेवन करें, जैसे- फजियां, ब्रैन (गेहूं, चावल और जई आदि का छिलका), पत्ते वाली सब्जियां, अगार, कुटी हुई जई, चाइनाग्रास और ईसबगोल आदि को कब्ज से परेशान रोगी को खाने में देना चाहिए।

क़ब्ज़ में परहेज़ :

  • तले पदार्थ, अधिक मिर्च मसाले, चावल, कठोर पदार्थ, खटाई, रबड़ी, मलाई, पेड़े आदि का सेवन न करें। कब्ज दूर करने के लिए हल्के व्यायाम और टहलने की क्रिया भी करें। पेस्ट्रियां, केक और मिठाइयां कम मात्रा में खानी चाहिए।

कमर दर्द और जोड़ो के दर्द को जड़ से ख़त्म करने का हैरान करने वाला उपाय

  • गेहूं एक प्रकार का आहार होता है जो भोजन के उपयोग काम में लिया जाता है तथा सारे खाने वाले पदार्थों में गेहूं का महत्वपूर्ण स्थान है। सभी प्रकार की अनाजों की अपेक्षा गेहूं में पौष्टिक तत्व अधिक होते हैं। इसकी उपयोगिता के कारण ही गेहूं अनाजों में यह राजा कहलाता है।
  • अपने देश भारतवर्ष में गेहूं का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। गेहूं की अनेक किस्में होती हैं जैसे- कठोर गेहूं और नर्म गेहूं। रंगभेद की दृष्टि से गेहूं सफेद और लाल दो प्रकार की होते हैं। सफेद गेहूं की अपेक्षा लाल गेहूं अधिक पौष्टिक मानी जाती है।
  • इसके अलावा बाजिया, जनागढ़ी, शरबती, सोनरा पूसा, बंदी, बंसी, पूनमिया, टुकड़ी, दाऊदखानी, कल्याण, सोना और सोनालिका आदि गेहूं की अनेक किस्में होते हैं। गेहूं के आटे से रोटी, पावरोटी, ब्रेड, पूड़ी, केक, बिस्कुट आदि अनेक चीजें बनाई जाती हैं। इसका प्रयोग भोजन के रूप में किया जाता है। गेहूं में चर्बी का अंश कम होता है।  अत: गेहूं के आटे की रोटी के साथ उचित मात्रा में घी या तेल का सेवन करना आवश्यक होता है इससे शरीर में ताकत की वृद्धि होती है। घी के साथ गेहूं का आहार सेवन करने से पेट में गैस बनना दूर होता है तथा कब्ज नहीं होती है।

 

आवश्यक सामग्री :
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  1. 2 ग्राम गेहूं की राख
  2. 12 ग्राम शहद
  3. गेहूं का आटा 50 ग्राम
  4. घी 10 ग्राम
  5. दूध या पानी 200 ग्राम
  6. हल्दी 1 ग्राम

प्रयोग की विधि :

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  • 12 ग्राम गेहूं की राख 12 ग्राम शहद में मिलाकर कर चाटने से कमर और जोडो का दर्द ठीक हो जाता है। यह प्रयोग आप कम से कम एक माह तक दोहराए आपको लाभ होगा अगर आपको जल्दी लाभ मिल जाए तो आप इसको सप्ताह में 3 दिन बार ले।
  • गेहूं की रोटी एक ओर सेंक लें और एक ओर कच्ची रहने दें इस कच्ची रोटी की ओर तिल का तेल लगाकर कमर दर्द वाले अंग पर बांध दें। इससे दर्द दूर हो जायेगा।
  • गेहूं का आटा 50 ग्राम, घी 10 ग्राम, दूध या पानी 200 ग्राम, हल्दी 1 ग्राम इन सबको मिलाकर पकायें। इसका गर्म लेप दर्द वाले भाग पर लगाए इससे लाभ मिलेगा।
  • गेहूं को पानी में उबालकर इसे छान लें फिर इस पानी से सूजन वाली जगह को धोएं इससे सूजन कम हो जाती है।
  • गेंहू की रोटी एक ओर सेंक लें तथा एक ओर कच्ची रहने दें फिर रोटी की कच्ची भाग की तरफ तिल का तेल लगाकर सूजन वाले भाग पर बांध दें। इससे सूजन तथा दर्द दूर हो जाएगा।

थोड़ा सा नमक एक कपडे में डालकर चुपचाप रखे यहां, अगली सुबह देखे चमत्कार

  • नमक जिसे सोडियम भी कहते है शरीर के लिए छोटी मात्रा में जरूरी है लेकिन अधिक सेवन करने पर गंभीर, दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है. उच्च स्तर के नमक की खपत में कई नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं, जैसे रक्तचाप और हृदय संबंधी जटिलताओं फिर भी विशेषज्ञों के अनुसार मध्यम मात्रा में नमक जो स्वास्थ्य की सिफारिशों को पूरा करता हैं. कुछ स्वास्थ्य लाभ हैं, जैसे कि शरीर को ठीक से कार्य करना. रोज़ाना उपभोग करने वाले खाने में नमक की मात्रा भिन्न होती है।
  • नमक केवल  खाने के स्वाद को बढ़ाने में नहीं बल्कि कई कामो में नमक का इस्तेमाल किया जाता है नमक खाने में  उपयोग में आने वाली सबसे पुरानी चीज है. इसे दुनिया भर में काम लिया जाता है। दुनिया भर में लगभग 200 मिलियन टन का उत्पादन होता है जिसमे से खाने के लिए सिर्फ 6 % नमक काम आता है. खाने के अलावा नमक का उपयोग जहाँ ज्यादा बर्फ गिरती है वहाँ हाईवे से बर्फ हटाने में होता है. इसके अलावा वाटर कंडीशनिंग आदि  में भी नमक का बहुत उपयोग होता है।
  • अब तक तो आपने सिर्फ खाने में ही नमक का इस्तेमाल किया है, मगर क्या आपको पता है कि यह किचन में मिलने वाला नमक आपको धनवान भी बना सकता है। हो सकता है आपको ये अंधविश्वास की बात लगें, लेकिन ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में घर की सुख-समद्धि व अन्य कई समस्याओं के लिए नमक से जुड़े ये उपाय बताए गए हैं।

कैसे करता है ये काम ?

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  1. नकारात्मक ऊर्जा करे दूर
    सप्ताह में एक बार गुरुवार को छोड़कर पोंछा लगाते समय पानी में थोड़ा साबुत खड़ा नमक (समुद्री नमक) मिला लेना चाहिए। इस उपाय से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  2. धन प्राप्ति के लिए
    नमक को कांच के पात्र में रखें और उसमें चार-पांच लौंग डाल दें। इससे घर में धन आना शुरू हो जाता है साथ ही बरकत भी बनी रहती है।
  3. बाथरूम और टॉयलेट को करे दोष मुक्त

    एक कांच की कटोरी में खड़ा नमक (समुद्री नमक) भरें और इस कटोरी को बाथरूम में रखें। इस उपाय से भी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो सकती। टॉयलेट में कांच के बाऊल में क्रिस्टल साल्ट (दरदरा नमक) भर कर रखें, 15 दिन बाद बदल दें।

  4. वास्तुदोष करे दूर
    मिला-जुला वास्तुदोष हो तो जिसे आप बदल नहीं सकते। इसके लिए आप साबुत नमक भर कर कुछ देर रखे रहें, फिर वॉशबेसिन में डालकर पानी से बहा दें। नमक इधर-उधर न फेंके। इससे वास्तुदोष दूर होता है।
  5. नजर उतारने के लिए
    यदि आपको या किसी बच्चे को किसी की नजर लग गई है तो सात बार एक चुटकी नमक उस पर से उतारकर उसे बहते पानी में बहा दें। नल खोलें और उसे नल के बहते पानी में डाल दें। इससे नजर दोष दूर हो जाएगा।
  6. शनि का दुष्प्रभाव करे कम

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    यदि भोजन करते समय आपको दाल या सब्जी आदि में नमक कम लगे तो उपर से नमक न डालें। ऐसे में काला नमक तथा मिर्च कम होने पर काली मिर्च का प्रयोग करें। यदि आप ऐसे नहीं करेंगे तो इससे शनि का दुष्प्रभाव शुरू हो जाएगा।

  7. रोग से मुक्ति हेतु
    सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें। अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें। इससे आपकी सेहत ठीक रहेगी।

भूलकर भी इन लोगों को नमक का सेवन नही करना चाहिए, क्यूँकि ये उनके लिए है ज़हर के समान

  • इस विकास और देखा देखी की अंधी दौड़ में हमने अपने स्वास्थ्य को खो दिया है, इस विज्ञापन आधारित खान पान में हुए बदलाव से हमारी स्थिति यहाँ तक पहुच गई है कि सरकार के आंकड़े के अनुसार हर 100 में से 85 लोग किसी ना किसी बीमारी का शिकार है, ये बीमारी हमें कोई देकर नहीं गया है, ये हमने खुद पैदा की है। आपने अपने खानपान में इतने बदलाव कर दिए जिसके अनुकूल हमारा शरीर नहीं है, हमने अपना खाने का सब तरीका बदल दिया, जो चीज विज्ञापन में दिखाई जाती है वो अपनी रसोई में ले आए, जिससे आपके शरीर का सत्यनाश हो गया।
  • खाना चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, बिना नमक के वह बेस्वाद और अरुचिकर ही लगता है। कभी-कभी सब कुछ ठीक-ठाक होने के बावजूद यदि नमक ज्यादा हो गया है, तो वह खाया नहीं जाता, इसलिए नमक के कम व उचित प्रयोग से भोजन न केवल स्वादिष्ट लगता है, बल्कि कई बीमारियों को भी दूर रखता है।
  • जिन लोगो को उच्च रक्तचाप यानि हाई ब्लड प्रेशर , खारिश-खुजली , रक्त की खराबी , सफ़ेद दाग या सूजन की तकलीफें होती हैं, उन्हें डॉक्टर परहेज के तौर पर नमक छोड़ने का निर्देश देते हैं। वैसे शरीर के लिए जितने नमक की आवश्यकता होती है, उसकी पूर्ति तो दाल, फल और सब्जियों के सेवन से ही हो जाती है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अल्जीरिया के मूल निवासी और कोलम्बिया के तटवर्ती मैदानों में बसने वाले लोग नमक का प्रयोग बिलकुल नहीं करते। फिर भी वहां के लोगों का शारीरिक बल और स्वास्थ्य किसी से कम नहीं होता।

आयोडीन नमक या समुद्री नमक की सच्चाई :

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  • आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता। आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है। सेंधा और काला नमक ही खाये। आयोडीन नमक उच्च रक्तचाप, थाइराइड, लकवा और पौरुष कमज़ोरी का प्रमुख कारण है।
  • नमक के कारण ही शरीर में गुर्दे और लीवर की समस्याएं पैदा हो जाती हैं। यह पेट और आंतों के बहुत नर्म भागों पर अपना बुरा प्रभाव डालता है। भोजन में नमक के ज्यादा इस्तेमाल से कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, जुकाम, नींद न आना आदि रोग हो जाते हैं। यह दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर को भी बढ़ाता है। इससे अम्लता (एसिडिटी) की शिकयत हो जाती है। नमक के अधिक प्रयोग से प्यास बढ़ जाती है क्योंकि यह पचता नहीं है। इसलिए शरीर नमक को पानी में घोलकर बाहर करता है।
  • इस बात की विशेष सावधानी रखे की फल, सलाद, अंकुरित, रस, दही आदि प्राकृतिक खाद्यों में नमक का प्रयोग बिल्कुल न करें, क्यूँकि ये ज़हर के समान है।
  • दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आओडीन युक्त नमक 40 साल पहले ban कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क मे नहीं , यही बेचा जा रहा है डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आओडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ?? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आओडीन युक्त नमक खिलाया !(1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आओडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया ! और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आओडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आओडीन युक्त नमक बिक नहीं सकता भारत मे !! वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया !

अंत आपके मन मे एक और सवाल आ सकता है कि ये सेंधा नमक बनता कैसे है??

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  • तो उत्तर ये है कि सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है !! पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’ ,लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है ! जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है !! वहाँ से ये नमक आता है ! मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले ! काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे !! क्यूंकि ये प्रकृति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है !! और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता !!

सफ़ेद नमक या समुद्री नमक के 11 नुकसान :

  1. ज्यादा नमक खाने से क्या होता है – आयुर्वेद में कहा गया है कि नमक पित्त को खराब करने वाला, भारी, गर्म, अधिक प्यास उत्पन्न करने वाला, हाई बीपी की समस्या होने से गुस्सा, उत्तेजना पैदा करने वाला होता है |
  2. अमेरिकी कैंसर अनुसंधान शाला के सदस्य डॉ. फ्रेडरिक एल. हाफमैन ने अपनी पुस्तक ‘कैंसर और आहार’ में लिखा है, ‘नमक खाने से शरीर में विद्यमान पोटैशियम नष्ट होते हैं और इसके अभाव में एवं नमक का निष्कासन न होने से कैंसर की उत्पत्ति होती है।
  3. नमक के अधिक होने से शरीर में एसिड की मात्रा को बढ़ाती है, क्योंकि क्लोराइड के कारण हाइड्रोक्लोरिक एसिड का निर्माण होता है। इस अम्ल की अधिकता से पेट में अल्सर हो सकता है।
  4. अधिक नमक खाने वालों को पसीना अधिक आता है और प्यास भी अधिक लगती है।
  5. रक्त में नमक की अधिकता से रक्त गाढ़ा हो जाता है, जिससे रक्त संचार में बाधा पड़ती है। नमक की उपस्थिति से खराब द्रव्य शरीर के बाहर कठिनाई से निकल पाते हैं |
  6. आजकल उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, लिवर व गुर्दे के विकार, त्वचा रोगों के तेजी से बढ़ने का कारण मुख्य रूप से नमक के अति सेवन की आदत ही है।
  7. ज्यादा नमक के सेवन से मोटापा बढ़ सकता है |
  8. शरीर में नमक के ज्यादा होने से टखने में सूजन, हड्डियां पतली होने की बीमारी होने की संभावना हो जाती है जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा भी बढ़ जाता है।
  9. अधिक नमक के सेवन से हृदय की धड़कन, खुजली, रक्त में लौह तत्व की कमी, पथरी की तकलीफ, मुंहासे, गंजापन , नींद का कम आना, फोड़े-फुंसियां, झाइंयां, हड़ियां कमजोर होना, मांसपेशियों का लचीलापन कम होना, उन्हें संकुचित करना, पाचन-शक्ति का कमजोर होना, अनिद्रा की तकलीफ, अम्लता (एसिडिटी) की तकलीफ़, अंगों में जल का जमाव बढ़ना जिससे सूजन, दर्द और मोटापा बढ़ाने जैसी तकलीफें पैदा करता है।
  10. शरीर में ज्यादा नमक की मात्रा से निर्जलीकरण यानी डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है।
  11. रक्त में ज्यादा नमक होने पर किडनी को खून फिल्टर करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जिसकी वजह से किडनी से जुड़ी बीमारियां हो सकती है |

यूरिन इन्फ़ेक्शन की दिक़्क़त होती है तो आज ही इन चीज़ों को खाना छोड़ दे वरना पछताओगे

  • यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन (UTI) यानि यूरिन इन्फेक्शन, पेशाब में जलन या पीडा (Burning Pain in Urine) एवं गुर्दे संबंधी अनेक रोगों के कारणों से पेशाब में जलन पीड़ा होती है। तुरंत उपचार न किया जाए तो जलन बहुत कष्टकारी होती जाती है। पेशाब में दिक्कत आना या यूरिन इन्फेक्शन होना एक आम समस्या होती जा रही है. ज़्यादातर पुरुष, महिलाओं या लड़कियों में 100 में से अस्सी प्रतिशत लोग कभी न कभी मूत्र रोगों से परेशान रहे होते हैं।
  • क्रैनबेरी फल पेशाब के रस्ते में होने वाले संक्रमण का एक बेहतर प्राकृतिक उपाय है. लेकिन ये इलाज सबसे प्रभावी होने के साथ साथ, थोड़ा महंगा भी होता है। क्योंकि क्रैनबेरी का फल आसानी से हर जगह उपलब्ध नहीं हो पाता है. और ये दाम में कुछ महंगा भी होता है. लेकिन यहाँ हम आज आपको जो उपाय बता रहे हैं, वो बहुत किफायती, सस्ता और बड़ी ही आसानी से मिलने वाली चीज है. और आप पेशाब सम्बन्धी समस्या से इस सस्ती चीज़ से राहत पा सकते हैं।आइए जानते है इसके होने के कारण, लक्षण और आसान घरेलु उपाय के बारे में…

यूरिन इन्फ़ेक्शन के कारण : 

  • यूरिन इन्फेक्शन होने के कारणों में मुख्य रूप से सुजाक, मूत्राशय की जलन, पेशाब नली में यूरेथ्रा की सूजन, जरायु की विकृति, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी, मूत्राशय में क्षय रोग के कारण गांठे बनना, गर्मी के मौसम में पानी न पीना, मूत्राशय का संक्रमण, मूत्र के वेग को रोककर रखना आदि होते हैं।

यूरिन इन्फ़ेक्शन के लक्षण : 

  • रुक-रुककर पेशाब आना, बार-बार यूरिन आना, पीला पेशाब आना, पेशाब करते समय मूवेंद्रिय में जलन होना आदि लक्षण महसूस होते हैं।

यूरिन इन्फेक्शन में ये चीजें ना खाएं :

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  1. ऐसे पदार्थ जो चीनी डालकर बनाए जाते हैं, उन्हें यूरिन इन्फेक्शन के दौरान खाने से परहेज करें। मीठे से बने बदार्थ मूत्र के रास्ते में बैक्टीरिया को ब्रीडिंग करने की सहूलियत देते हैं। इसलिए यूरिन इन्फेक्शन के दौरान केक, कुकीज, कार्बोनेटेड ड्रिक और अन्य चीनी से बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके बजाय पानी, फल और साबुत अनाज पर ज्यादा निर्भर रहना चाहिए।
  2. कॉफी का भी त्याग कर दें कॉफी में मौजूद कैफीन मूत्राशय को चिढ़ाने और बेचैन करने का काम करती है यानी यूरिन इन्फेक्शन की स्थिति में कॉफी का सेवन समस्या को और बढ़ा देगा। इसकी जगह हर्बल टी का इस्तेमाल करें।
  3. किसी भी प्रकार की शराब मूत्राशय की बेचैनी बढ़ाती है, इसलिए यूरिन इन्फेक्शन की स्थिति में शराब का सेवन भी समस्या को और ज्यादा बढ़ा देता है।
  4. मिर्च -मसाले वाला भोजन यूरिन इन्फेक्शन की स्थिति को और गंभीर बना देता है। यह ज्यादा जलन और दर्द पैदा करता है। इसलिए समस्या के दौरान जितना हो सके सादा भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
  5. गुड़, तेल, खटाई का सेवन न करें।

यूरिन इन्फेक्शन के मरीज इन बातों का भी रखे ख्याल  :

  • पेट के नीचे मूत्राशय वाले भाग पर गर्म पानी की थैली से सिकाई करें।
  • देर रात तक ना जागें ।
  • धूम्रपान से परहेज करें।
  • धूप व गर्मी वाले स्थान पर ज्यादा समय रहने से बचें।
  • पेशाब के वेग को न रोकें।

यूरिन इन्फ़ेक्शन से बचने के घरेलु उपाय :

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  1. हल्दी (100 ग्राम), काले तिल (250 ग्राम) और पुराना गुड़ (100 ग्राम) को पीसकर तवे पर सूखा ही भूनें। फिर रोज एक चम्मच चूर्ण को पानी के साथ पीएं।
  2. यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) यानी पेशाब के रास्ते में होने वाले इन्फेक्शन को दूर करने के लिए सबसे पहले ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीना जरूरी है। इससे इन्फेक्शन फैलाने वाले बैक्टीरिया को पेशाब के जरिए शरीर से बाहर फेंकने में मदद मिलती है।
  3. करौंदा यानी लाल रंग की खट्टी बेरी (क्रेन बेरी) में हिप्यूरिक एसिड पाया जाता है, जो यूरिथ्रा (पेशाब की नली या रास्ता) में बैक्टीरिया को जाने और वहां बने रहने से रोकता है। इसीलिए यूरिन इन्फेक्शन की समस्या में करोंदा या इसके जूस का नियमित सेवन करना चाहिए। ज्यादा शुगर से बचने के लिए लिए करौदे के जूस को बिना मीठा मिलाए ही पीना चाहिए। क्रेन बेरी सप्लीमेंट के नाम से इसका सप्लीमेंट भी बाजार में मिलता है। रोग की स्थिति में विशेषज्ञ इसकी करीब 400 मिलीग्राम मात्रा रोज लेने की सलाह देते हैं।
  4. दही में प्रोबायोटिक होते हैं, जो लाभकारी बैक्टीरिया कहलाते हैं। प्रोबायोटिक (जैसे कि लेक्टोबेसीलि और बाइफिडोबैक्टीरिया) शरीर में इन्फेक्शन का विरोध करते हैं। यूरिन इन्फेक्शन की समस्या में दही का रोजाना सेवन करें। साथ में करीब एक महीने तक रोजाना प्रोबायोटिक सप्लीमेंट भी ले लें तो इन्फेक्शन पूरी तरह समाप्त करने में मदद मिलेगी।
  5. लहसुन और प्याज, दोनों में बैक्टीरिया के खिलाफ काम करने की प्रवृत्ति होती है। ये दोनों शरीर में कहीं भी पैदा होने वाले नुकसानदायक बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म कीटाणुओं को मारने का काम करते हैं। इसलिए यूरिन इन्फेक्शन की स्थिति में इन दोनों का ज्यादा-से-ज्यादा सेवन करना चाहिए। लहसुन गजब का एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी बायोटिक पदार्थ है। लहसुन के एंटी ऑक्सीडेंट रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ातें हैं। लहसुन में एंटी फंगस गुण भी हैं, जिससे यह हाथ-पैरों में फंगस इन्फेक्शन को दूर करता है।
  6. मूत्राशय को स्वस्थ रखते हैं विटामिन सी वाले पदार्थ : एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में विटामिन सी हमारे ब्लेडर (मूत्राशय) और यूरिथ्रा (मूत्रनली) को स्वस्थ रखने और उसकी कार्यप्रणाली को सुचारू बनाने में मदद करता है। विटामिन सी पेशाब को ज्यादा अम्लीय (एसीडिक) भी बनाता है, जिससे इन्फेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया पेशाब में पनप नहीं पाते। विटामिन सी की इस विशेषता को जानने के बाद यूरिन इन्फेक्शन तरबूज, शिमला मिर्च जैसे विटामिन सी से भरपूर पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  7. खास बात : ज्यादा अम्ल से मूत्राशय की परेशानी बढ़ सकती है, इसलिए हमें फलों के मामले में पूरे फल के बजाय उनका जूस ही इस्तेमाल करना चाहिए। नुस्खा 1 : आधा कप अंगूर का रस लगभग एक हफ्ता पीने से पेशाब खुलकर आता है। साथ ही बार-बार पेशाब आने की समस्या भी दूर होती है।  यह भी पढ़ें – प्रोस्टेट की बीमारी में क्या खाएं तथा क्या ना खाएं। नुस्खा 2 : एक हफ्ते तक रोज सुबह एक कप पानी में आंवले का रस मिलाकर पीने से पेशाब की रुकावट दूर होती है। नुस्खा 3 : आंवले के रस में हल्दी और शहद मिलाकर रोजाना सेवन करने से यूरिन इन्फेक्शनकी बीमारी में लाभ होगा। नुस्खा 4 : रोजाना नाशपाती का रस पीने से भी पेशाब की कई समस्याएं जैसे यूरिन इन्फेक्शन आदि हल होती हैं। नुस्खा 5 : आंवले के 200 ग्राम रस में थोड़ी-सी काली मिर्च और हल्दी मिलाकर रोज पीएं।
  8. यूरिन इन्फेक्शन को दूर करने में मददगार ब्लू बेरी भी एक ताकतवर एंटी ऑक्सीडेंट हैं। एक अध्ययन के अनुसार यूरिन इन्फेक्शन के लक्षण दिखाई देने के पहले 24 घंटों में यदि अच्छी मात्रा में ब्लू बेरी का शुद्ध जूस पी लिया जाए तो यूरिन इन्फेक्शन के लक्षणों में कमी आनी शुरू हो जाती है यानी रोग की अवस्था में ब्लू बेरी का नियमित सेवन बहुत फायदा पहुंचा सकता है।
  9. यूरिन इन्फेक्शन में होने वाली जलन कम करता है अनानास का ब्रोमेलेन : अनानास में ब्रोमेलेन नाम का तत्व होता है, जो कई एंजाइम का मिश्रण होता है। इसकी विशेषता यह है कि यह इन्फेक्शन के दौरान पैदा होने वाली जलन को कम करता है। इस तत्व में बैक्टीरिया और वायरस को मारने की भी क्षमता पाई गई है।
  10. यूरिन इन्फेक्शन की समस्या होने पर कुछ विशेषज्ञ एक गिलास पानी में आधा चम्मच बेकिंग सोडा डालकर पीने की सलाह देते हैं। इससे यूरिन इन्फेक्शन के दौरान पैदा होने वाली जलन और दर्द से राहत मिलती है।
  11. लौकी : लौकी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और मिनरल से भरपूर होती है। यह पित्त को बाहर निकालती है। यह हमारे तंत्रिका तंत्र को सुचारू रखती है और मूत्र की जलन और किडनी व मूत्र संबंधी अन्य समस्याओं को दूर करती है।
  12. यूरिन इन्फेक्शन के रोगी रात को एक गिलास पानी में पांच-छह चम्मच सौंफ भिगो दें। सुबह सौंफ को छान लें और पानी को पी जाएं।
  13. हरे धनिये के पत्तों का रस निकालें और थोड़ी चीनी मिलाकर रोज पीएं।
  14. भोजन के साथ पुदीने की चटनी जरूर खाएं।
  15. अनार के छिलकों को सुखा लें। फिर पीसकर एक चम्मच मात्रा रोजाना पानी के साथ लें।
  16. रोजाना सुबह के वक्त मेथी की पत्तियों का करीब दो चम्मच रस निकालें और दस दिन तक सेवन करें।
  17. 10-15 दिन तक कच्ची अजवायन में गुड़ मिलाकर खाएं।
  18. कुछ दिन तक रोजाना केले का दो चम्मच रस निकालें और उसमें नमक मिलाकर पीएं।
  19. कुछ दिन तक रोजाना पत्तागोभी को बिना कोई मिर्च-मसाला डाले घी में भूनकर खाएं।
  20. जाड़े का मौसम हो तो रोजाना 250 ग्राम गाजर का रस पीएं।
  21. यूरिन इन्फेक्शन में रोजाना शहतूत के रस में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर पीएं इससे भी लाभ होगा ।
  22. पेठा या आंवले का मुरब्बा सुबह-शाम नियमित रूप से खाएं।
  23. फलों में तरबूज, सेब, अनार, संतरा, मौसमी, आंवला, फालसा आदि रसीले व ठंडी तासीर वाले फलों का सेवन करें।
  24. कच्चे दूध की लस्सी में छोटी इलाइची का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पिएं।
  25. गाजर, गन्ने का रस, कच्चे नारियल का पानी, छाछ बार-बार सेवन करें।
  26. पीने का पानी कुनकुना ही हर बार पिएं। प्यास में नींबू पानी पिएं।
  27. सब्जी में फूल गोभी, भिंडी, तुरई, प्याज, धनिया, अदरक सेवन करें।
  28. रात में भिगोकर रखे (कतीरा) गोंद में स्वादानुसार चीनी मिलाकर सुबह खाएं।
  29. एक कप मूली का रस सुबह-शाम पिएं।